6/22/2007
शेर
Mushkilo se bhag jana aasan hota hai,Har mod par jindgi ka imtahan hota hai,Darne walo ko kuch milta nahi Zindgi mai,Ladne walo k pairo mai Jahan hota hai....
ज़िन्दगी
कुलबुलाती चेतना के लियेसारी सृष्टि निर्जनऔर....कोई जगह ऐसी नहींसपने जहाँ रख दूँ!दृष्टि के पथ में तिमिर हैऔ' हृदय में छटपटाहटजिन्दगी आखिर कहाँ पर फेंक दूँ मैंकहाँ रख दूँ?~~~~~~कवि दुष्यंत कुमार
6/10/2007
मे मर जाउंगा ?(मे खुद नही किसी ओर कि कहानी हे )
कुछ दिनों पहले नेट पर एक लड़के से बात हुई .उसकी उमर १९ साल ओर उसकी प्रेमिका कि उमर १७-१८ .वो कह रह अथ अकी वो उसे सच्चा प्यार करता हे ओर वो भी उसे .मेने कहा मन लो २-४ साल मे उसका या तुम्हारा मन बदल जाये या किसी को कोई ओर पसंद आ जाये तो ? क्योकि उसके अनुसार उसकी प्रेमिका डॉक्टर बन्ने के लिए पढाई करेगी । मेने कहा एसे मे ये संभव हे कि कोई ओर उसके नजदीक आ जाये या एसा तुम्हारे साथ ही हो जाये । उसने कहा कि अगर उसने कभी बेवफाई कि तो वो आत्महत्या कर लेगा .उसके हिसाब से सच्चे प्यारका यही मतलब हे .मेने कह आ यार जब तुम उसे ओर वो तुम्हे sachhapyar करती हे तो तो तुम्हारे दिमाग मे ये ख़्याल hi kese aaya ki usne dhokhaa diya to? इसका मतलब अभी विस्वास इस हद तक विक्सित नही हुआ । वरना तुम ये कहते कि वो मुझे कभी नही दूर करेगी .वो मेरे बिना जी नही पायेगी .तो थिक हे लेकिन अक ओर तो तुम शक कर रहे हो .दुसरी ओर अभी से निर्णय कर लिया कि आक्त्म्हात्या कर लूंगा । ये प्राकृतिक नही हे.ह प्यार मे जब दिल टूटता हे तो एसे लोगो कि जीन एकी इच्छा ख़त्म हो जती हे .पर पहले से ही एसा निर्णय करना गम्भीर मनोवेग्यानिक समस्या हे .शित्य्कारो फिल्म्वालो को प्यार को गर्वंवी करते समय भी ये ध्यान रखना कहिये । अधिकांश पेर्मी जोडे भी प्यार कि उस पराकाष्ठा तन से गुजर कर आत्म के मिलन तक नही पहुच पाते .ज्यादातर मामलो मे ये सिर्फ एक अची दोस्ती साबित होती हे .पर प्यार का ग्लेमर इतना हे कि हर कोई अपन एआप्को इसमे इन्वाल्व दिखाता हे भले ही वो विकल्पो कि कमी या योंन आकर्षण का ही केजुअल संबंध हो .पर उसे सच्चे प्यार के रुप मे दिखाना ओर उसके लिए मरने मिटने कि भावना रखना गलत हे । ये भाव्नाये .गहन प्यार का अनुभव होने ओर उसके टूट जाने के बाद हो तो कोई बुराई नही लेकिन पहले से ही एसा सोचना अपरिपक्वता हे .अम्नोवेज्ञ्निक भी आईएस बात को स्वीकार रहे हे कि प्यार समाज मे अक बड़ी बुरी बनकर उभर रहा हे इसकी वजह से लोग अपनी थिक ठाक जिन्दगी को छोड़कर अनजानी रहो पर चल रहे हे नतीजा परिवारी विघटन .तलाक । बचू के अलगाव व अकेलेपन के रुप मे निकल रहा हे .मेने उसे लाख समझाया कि अभी आराम से जिन्दगी जीओ .प्यार क आनद लो ज्यादा मत सोचो ना ही दरो .जिन्दगी भर साथ रहने का इरादा एच तो उमर होते होई शादी कर लो .अक्सर लडकिया .तीन AGE मे हुई प्यार को बाद मे अच्छी करियर कि वजह सेठुकारा देती हे । मुझे आज भी उस लडके के शब्द अच्च्ची तरह याद हे ---कि अगर उसने बेवफाई कि तो मे मर जाउंगा .क्योकि सच्चे प्यार का यही मतलब हे .??क्यासछा प्यार हो ना हो लेकिन दुनिय अको दिखने के लिए ही कि मे सच्चा प्यार कर्ता था --आत्महत्या मनोवाग्यानिक बीमारी नही हे प्यार को गोरावान्वित करना तो थिक हे लेकिन प्यार के विभिन पक्षो ओर जीवन मे फली सछईयो को बहार लं आना क्या साहित्यकारो फिल्म्कारो का दायित्व नही हे --मधुर भंडारकर कि तरह ,.अगर उस लाद्क एने कभी आत्महत्या कि तो उसकी वजह प्यार नही होगा बल्कि उसकी प्यार के बारे मे एसी समझ होगी जो उसे खुदबनने पर मजबूर कर देगी । जिन्दगी मे अगर वो आगे बढ पाय तो नही मरेगा ओर नही बढ पाया तो अपनी साड़ी अस्फल्ताऊ से उत्पन्न निरर्थकता बोध को किनारे रखकर प्यार मे दिल टूटने को इसकी वजह मने गा ओर मर्त्यु का वर्ण करेगा .हना सच्चा प्यार ?आत्महत्या ओर समझा का फर्का .अगर कोई आत्महत्या ना करे तो इसका मतलब हे कि वो सच्चा प्यार नही नही कर्ता। आये दिन लड़को द्वारा खुद को आग लगाने या अक्प्क्शिया प्यार मे मरने कि खबरे आती रहती हे .जाहिर हे प्यार का यथार्थवादी दर्श्ती से विश्लेषण का आभाव हे ..अगर आपको भी कोई लड़का या लडकी से प्यार हो जाये ओर बाद मे संबंध टूट ज्ये तो आप भी आईएस एसछा प्यार का नाम देकर मर्त्यु के बाद भी पर्सिधा हो सकते हे .कितना नीच हे आदमी आत्महत्या मे भी आएदेंतिती दून्धता हे .जीती जी ना शै मरने के बाद ही पर्सिध हो जाये.मेरी समझ मे तो जिन्दगी से बड़ी कोपी चीज नही । सछ एप्यार के नाम पर आत्न्ह्त्या का विचार रखना खुद के प्रति बेईमानी हे ओर खुच नही ।
हमसफ़र
क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नहीहोतासच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होताकोई सह लेता है कोई कह लेता है क्यूँकी ग़म कभी ज़िंदगी से बढ़ कर नही होताआज अपनो ने ही सीखा दिया हमेयहाँ ठोकर देने वाला हैर पत्थर नही होताक्यूं ज़िंदगी की मुश्क़िलो से हारे बैठे होइसके बिना कोई मंज़िल, कोई सफ़र नही होताकोई तेरे साथ नही है तो भी ग़म ना करख़ुद से बढ़ कर कोई दुनिया में हमसफ़र नही होता!!! कापी पेस्ट करने मे पूर्णविराम ग़ायब हो गया हे .सो शमा करे .
6/06/2007
सच्ची खुशी
खुशी मन का एक भाव हे या फिर चीजो को इकट्ठा करने ओर उपभोग करने ओर स्वामित्व के भव से पेदा होने वाली कोई चीज ?पहले राजा ओर दरबारी रथ पर चलते थे तो बडे खुश होते थे --कि हम दुनिया से कितने आगे ओर विशेशाधिकारो का प्रयोग करने वाले आदमी हे ,भले ही उन्हें रथ का डंडा पकड़ कर हिलते दुलते चलना पडे क्योकि सडक तो उबड़ खाबड़ ही होती थी .बाकी लोग सोचते थे काश मेरे पास भी रथ होता तो कितना अच्छा होता.आज सब लोगो के पास यात्रा करने मे सुविधा कि द्र्श्ती से अच्छे साधन हे फिर भी सब के पास अक कार या बड़ी महंगी कार का सपना हे.ओर लोगो ने उसके प्रपात ना होने तक खुशी को स्थगित कर रखा हे .कार आ जाने कि खुशी भी ज्यादा देर टिकेगी नही क्योकि वो भी एक भव हे .स्वामित्व के भाव से पेदा होने वाली श्निक खुशी hepac
6/02/2007
माँ ,बेटी,बहन ,पत्नी ----बाप बेटा ,भाई पति
महिलाओ से एसी पकेशाये ओर पुरुषो से नही .दोहरे पर्तिमानो कि सूचक हे .जिस पार्कर पुरुष जीवन भर पुरुष बने रहकर अन्य भिमिकाओ को निभाता हे वेसे स्वतंत्रता स्त्री को प्राप्त नही हे .इन आदर्शो को आरोपण का ही परिणाम हे कि इनसे विचलन अक्श्य्म अपराध समझा जता हे ओर उन्हें कुलटा बेहया ओर जमीन मे गाड़कर पथ्रो से मारने तक कि सजा दी जति रही हे जबकि पुरुषो मे इन आदर्शो का आरोपण ना करके उन्हें इस मामले मे छूट दी जाती रही हे .सवाल ये कि हम स्त्री व पुरुष को अक जेअया क्यो नही मान सकते --- नारी तुम केवल शर्दा हो विस्वास रजत नभ पग तल मे --ओर इससे नीचे उतरी तो मे तुम्हे गला दबाकर मार डालूँगा । हां हां इसका स्वाभाविक परिणाम तो यही हे । ए मानाने मे क्या समस्या हे कि स्तरीय भी पुरुषो कि भाती सिर्फ इन्सान हे भगवान् नही । उन पर अक हद से ज्यादा आदर्शो का आरोपण उनके लिए अन्याय कि पर्स्थ्भुमी तैयार कर्ता हे .वाही बात हे कि जिस दश मे दुर्गा कि पूजा होती हे उसी मे इन्हें पत् मे ही मार दिया जता हे .हलाकि माँ कि भूमिका विशेष हे इसमे ये तर्क लागु नही किया जा सकता । मे भी प्रेमचंद जी ई इस बात को मानता हु कि --एक स्त्री मे अगर पुर्ष के गुन आ जाये तो वह कुलटा हो जति हे लेकिन अगर अक पुरुष मे स्त्री के गुन आ जाये तो वह संत हो जता हे । । फिर भी इन बातो को अक हद से आगे खीचा जाना अन्याय कि पर्स्थ्भुमी तयार कर्ता ह .
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अर्धांगिनी
नारीवाद व महिला sashaktikarna को बढावा देने के लिए स्कुलो ओर कालेजो मे होने वाले विमाषा ओर वद्द विवादी ,निबंधो मे जुमले कि तरह दो उदाहरण भूत पेश किये जाते हे .एक तो
अर्धांगिनी शब्द ,दुसरा यात्रा नारी पुज्यनते राम्नते तत्र देवता का । मेरी समझा मे ये दोनो हमारे गहरे तक शामिल प्त्र्सत्तावादी संसकारो के ही सूचक हे ना कि समानता के ॥ अर्धांगिनी शब्दा अच्छा हे पर ये भी नारी को पुरुष का आधा हिस्सा बताता हे यानी नारी कि याख्या पुरुष के हिस्से के रूप मे कि जाती हे .यानी अगर पुरुष ना हो तो नारी का आस्तिताव ही संभव नही हे क्योकि वो उसका आधा हिस्सा हे .मगर पुरुष के लिए एसा कोई शब्द नही हे कि वो नारी के शरीर का आधा हिस्सा हे । । अता सुच बात तो यही हे कि अर्ध्न्गिनी शब्दा नारी को वस्तु से ऊपर उठाकर अपने अनन्य हिस्से के रूप मे मान्यता देता हे पर फिर भी पुँ समानता का दर्जा नही देता .आत बार इसकी रत लगाना व इसके आगे अपने विच्रो को सम्पेरिशित ना कर पाना जहा शिक्षा मे रत्तेपन का सूचक हे वाही हमारी सोच कि सीमाओ का भी .
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