6/22/2007

ज़िन्दगी

कुलबुलाती चेतना के लियेसारी सृष्टि निर्जनऔर....कोई जगह ऐसी नहींसपने जहाँ रख दूँ!दृष्टि के पथ में तिमिर हैऔ' हृदय में छटपटाहटजिन्दगी आखिर कहाँ पर फेंक दूँ मैंकहाँ रख दूँ?~~~~~~कवि दुष्यंत कुमार

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