5/10/2007

शिक्षा एक पणय॒ वस्तु क्यो नही ?

शिक्षा एक पणय॒ वस्तु हे ओर इसका विक्रय होना ही चाहिऐ .भारत मे शिक्षॉ का मतलब सुच्नाओ कि उलटी भर हे --वय्क्तिताव का विकास नही .सुच्नाओ कि उलटी करने वाले अध्यापक बछो के वेयाक्तिताव को दबाते हे उभरते नही .फिर इसके व्यापार से दर केसा बल्कि इससे शिक्षा को सस्ता बनाने मे मदद मिलेगी .शिक्षा पर कुछ गिने चुने संस्थानों का कब्जा ना होकर पर्तिस्पर्धा व बडे बाजार के कारन ये इतनी सस्ती हो जाये कि हर किसी कि पहुच मे आ सके ओर हर कोई अपने लिए उपयोगी कोर्स कर सके नकी सिर्फ माँ बीए करने के लिय्वे मजबूर राहे .हलाकि निजीकरण ओर बजारिका छतीसगढ़ जेसा नही होना चाहिऐ कि हर कोई दूकान खोलकर बेत जाये बल्कि कर्माश सुधर होना चहिये ओर छात्रो के बच्व के भरसक उपाय होने चाहिऐ ।

स्कुलो मे उपस्थिति ?

अक्सर ये कहा जाता हे कि स्कुलो - कोलेजोमे छात्र उपस्थित नही रहते इसलिये छात्रो के लिए उपस्थिति अनिवार्य होनी चाहिऐ .मेरी समझ मे छात्रो कि नही शिक्षको कि उपस्थिति अनिवार्य किये जाने के पर्यास होने चहिए बेइमानी भरा तर्क हे कि --छात्र कक्षाओ मे नही आते क्या कोई दूकानदार ये तर्क देता हे कि चुकी ग्राहक नही आ रहे इसलिये मे दुकान पर नही रहूंगा .अगर छात्रो के ना आने पर अध्यापको को वेतन ना मिले तो --वो  निजी स्कुलो    के तरह मजबूर हो जायेंगे ।