2/27/2007

प्यार-शादी-विग्यापन----गिरते मानवीय मुल्य.

शादी का रास्टीय समारोह------ अभीसेक ओर एश की ----प्यार कि आधुनिक परीभासा .स्त्री सफ़लता डूण्ड्ती हे जबकी पुरुश सुन्दरता .एश ओर अभि के प्यार कि शुरुआत रीफ़्युजी फ़िल्म से हुई .हा हा बीच मे अभि सफ़ल नहि हुआ . एश एक आम ज्यादा समझदार लड्की की तरह प्यार भी करना चाहती थी ओर शादी भी, साथ ही पति सीधा-साधा ओर सफ़लता साथ मे हो तो बल्ले बल्ले . अभि नही चला तो सल्मान से शुरु फ़िर लगा कि ये तो मुझे बान्ध लेगा ओर आगे इसकी सफ़लता कि समभावनाये कम हे तो दुसरे से चिपको .दम हुई हीट साथ मे अपने विवेक भाई थोडे नेकदील भी हे ,आगे हो सकता हे सुपर स्टार बन जाये - तो उनसे प्यार शुरु . हा हा .सल्लु नाराज तो विवेक से बोले दात तोड दुन्गा. विवेक बेचारा शायद जानता नही था कि कुछ लोगो के लिये इन्सानी रिश्ते भी नफ़ा--नुक्सान से ज्यादा नही होते . वो शायद भुल गया था कि शोशन ओर मुनाफ़ जिस दुनिया काउसुल हे वहा भावनाओ कि फ़िक्र कोन करता हे.फ़िर विवेक फ़्लाप तो प्यार भी खत्म . ह ह गुड ना .अब अभि सहब धीरे धीरे सफ़ल तो प्यार शुरु .फ़िर शादी. जबर्दस्ती हाइप ताकि दोनो कि जोडी वाली फ़िल्मे सफ़ल हो . मीडीया मे बच्चन परिवार के मित्रो की कमी थोडी हे.वेसे भी आजकल खब्रे कम विग्यापन ज्यादा होते हे .च्युन्गम के उपर भूत शोध हो रहे हे कि इसे चबाने से स्म्रति बड्ती हे.कसरत करने से आदमी दिमाग से पेदल हो जाता हे .ताकि चुयुन्गम ज्यादा बिके . आज बजार वस्तुओ का नही छ्वी का विकरय करता हे.इसी तरह इन्सानी रिश्तो ओर नितानत निजी चीजो को भी उचला जाता हे ताकि बिना पेसे दिये ही चटपटी खबर के रूप मे जोडी पर्सिध हो जाये.यह आमिताभ सहब के वेयक्त्तव का पतन ही हे .घाटे से उब्ररने के लिये जिस तरह अमर सिन्ह जेसे लोगो के हाथो ब्लेक्मेल हो रहे हे .कुछ दिन पहले गुरु मे आभिशेक कि भुमिका के लिये उन्होने धर्तरास्त्र्ट कि तरह कहा कि अभिशेक ने अमिताभ को हरा दिया हे .अमिताभ ओर लता जी अतुल्नीय वयेक्तित्व हे.खेर शायद साल दो साल मे इस कहनी का अन्त भी मुझे ही लिख्नना पडेगा . अभि पर दया आ रहि हे .ओर एश कि सोच पर भि .........दोड जिन्द्ग्गी की तु भी दोड मे भी दो्ड रहा ह .बेचारा अभि ओर उनके पिता श्री अमिताभ जो अमर सिन्ग के अह्सानो तले दबे हे .कभी ये खबर भी उडी थी कि अमर सिन्ह एश से किस् चाहते थे . बकवास करते हे लोग .अमर सिन्घ जि तो अब उन्के ससुर के समान हे .ये मत समझईये कि मुझे महिलाओ पर सिर्फ़ कीचड उछालना आता हे . या मे उन्की सुन्दरता से जल्ता हु . या मे गलि के अवारा लडके कि तरह खुद से लदकी नही पटने पर उसे चालु घोशित कर रहा हु.ना हि मे आफ़िस के किसि पुरुस करमचारी कि तरह हु जो हर महिला करमचारी कि प्रोन्नति पर उस्के नाजायज सम्बन्धो कि अफ़्वाह उछाल देता हे .मुझे तो बस इतनी शिकायत हे कि अगर इसे सच्चे प्यार कि तरह बत्लाते हे.टीक वेसे हि जेसे आमिर खन ने घर से भगाकर शादी करने के १८ साल बाद अपनी बीवी को छोड दिया .बेचारी ने कभी अपने केरीयर के बारे मे नहि सोचा .अब उसे जिन्दगी भर इस पह्चान के साथ जीना पडेगा.शायद वो कभी आत्महत्या ही कर ले.एसे आदमी की पीडा की को आसानी से मह्सुस नहि किया जा सकता .सफ़ल लोगो को ज्यादा प्यार होता हे. १८ साल मे आमिर कि बिवि को किसि से प्यार क्यो नही हुआ .शायद इस्लिये कि उसे इस्का अन्जाम पता था . अगर उन्हे किसि से प्यार हो जाता तो क्या आमिर उसे इत्नी आसानी से छोड देते.मीडीया तब उन्के प्यार को लेकर बहस नही करता.खेर यक्तिगत स्वतन्त्रता का तो मे भी घोर समर्थक हु.किसि कि पर्सनल लाइफ़ पर टीका टीप्पणी भी मुझे पसन्द नहि हे .क्योकि एसे मामलो मे सच्चाई सिर्फ़ यक्तिगत ही होति हे .पर इसी तर्क के बहाने तो पुरुश केनिद्र्त समाज महीलाओ पर अत्याचार करता आ रहा हे .ये हमारा घरेलु मामला हे तुम कोन होते हो दखल देने वाले?पर जहा अन्याय हो उस पर चुप रहना कायरता हे . इसीलिये तो नारीवादी चिन्तको को आवाज लगानी पडी पर्सनल इज पोलिटीकल .अर्थात पारिवारिक या यक्तीगत जीवन से जुडे मसले सर्वजनिक वाद -विवाद का विसय हे.राज्य नागरिको के हित मे इन पर कानुन बना सकता हे.क्योकि ये मसले पहीलओ के पर्ती भेदभाव पुर्ण हे. सेलिब्र्टज की खिचाइ इस्लिये क्योकि इन्हे मुफ़त मे अप्ने उल जुलुल कारनामो के लिये पर्सिधी मिल्ती हे तथा सामान्य जनता विशेसकर युवा वर्ग इन्हे अपना रोल माडल मानता हे.तो फ़िर इन्की आलोचना क्यो नहि.अब अगर भारत की हर लडकी एश्वर्या जेसी सोच कि हो जाये तो मुझे जिन्दगी अकेले हि काटनी पदेगी.नाना पाटेकर कि तरह .प्यार मे धोखा खाये लोग कभी विस्वास नही कर पाते कि कोइ उन्से सच्चा प्यार भि कर सकता हे?वेसे मुझे तो दर्द तब होता हे जब लोग इसे प्यार कह्ते हे .वरना क्या काजोल--अजय,जावेद--शबाना जी जेसी जोडीया भी तो हे . प्यार मे कमिटमेन्ट ना हो तो वो केसे अवसर्वादिता मे बदल जाता हे .एश्वर्या के तेजी से बद्लते सम्बन्ध ओर अभि से विवाह ओर विवाह क सस्पेन्स क्रीयेट कर फ़ेमस होना ओर उस फ़ेमेसिटी का अप्नी रीलिज होने वालि फ़िल्मो कि तारीखो से ताल्मेल बेटाना .गिरते मान्वीय मुल्यो कि कहानी हे .अवसरवादिता का उदाहरण हे ना कि कि किसि सच्चे प्रेमी युगल के विवाह का जिस पर सब लोग खुश हो.केसा ये प्यार हे ?जमाना बदल गया हे दोस्त अब तुम भी बदल जाओ.नही मे नही बदलुन्गा.तो फ़िर तेयार रहो--दिल उसी का टुटता हे जिसका कसूर नही होता.प्यार की नयी परिभाशा .स्त्री सफ़लता डून्ड्ती हे --पुरुस सुन्दरता .वेसे मुझे लगता हे .आजकल लड्के ज्यादा इमोशनल होते हे .लड्कीया ज्यादा स्मझदार होती हे .एश्वर्या के तेजी से बद्लते प्रेमी इसका सटीक उदाहरण हे. प्रेमचन्द ने सटीक लिखा हे .---पुरुस मे स्त्री के गुण आ जाये तो पुरुस सन्त बन जाता हे ओर स्त्री मे अगर पुरुस के गुण आ जाये तो स्त्री कु्ल्टा बन जाती हे .वेसे मे कुलटा ..जेसी धारणाओ का सखत विरोधी हु.क्योक ये एकतरफ़ा महिलाओ के लिये ही हे पुरुसो के लिये एसे कोइ शब्द ही नहि हे .अब तो खेर योन व्यवहार नेतिकता का अन्श हे यह भी विवादास्पद हे .लेकिन फ़िर भी ओशो जेसे क्रान्तिका्री विचारक ने यह बात मानी हे कि नारीवा द महीलाओ को पुरुश बना देना चाहता हे .इस्से दोनो के बीच का आकर्श्ण व परेम का माधुर्य कम हो जाता हे .खेर बाकि आप पर.......

बचपन

बुन्दो से बना हुआ छोटा सा समन्दर लहरो से भीगती छोटी सी बस्ती .चल डुन्डे बारिश मे बचपन का साहिल .हाथ मे लेकर कागज की कश्ती .