2/28/2007

ताजमहल ? प्रेम का प्रतीक या क्रुरता का

विश्व के महान आश्चर्यो मे एक माना जाने वाला ताजमहल अपने अप्रतीम सोन्दर्य के कारण जग प्रसिद्ध हे .स्थापत्य कला कि द्र्स्टी से तो बात टीक हे लेकिन इसे प्रेम का प्रतीक बताना अतार्किक हे .कारण पहली बात तो इसका श्रेय उस्ताद ईसा व एक अन्य वास्तुकार(नाम ध्यान नहि आ रहा )को दिया जाना चाहिये .दुसरे ताजमहल पर लगी सुच्नाओ मे इन्का उल्लेख ना के बराबर हे .ये बात तो परेटो नाम के समाजशास्त्री ने सही कही हे कि-- इतिहास अभिजन या कुलीन वर्गो का शमशान हे .खेर ये तो सामान्य विशेसता हे . हमारे राजस्थान मे भी अप्ने पुर्वजो कि बेगार से महल किले खडे करवाने वाले राजाओ के निस्पश इतिहास लेखन से भी लोगो की भवनाये आहत हो जाती हे .मुल बात ताजमहल के बारे मे की वह प्रेम का प्रतीक न होकर क्रुरता का प्रतीक क्यो हे -- पहली बात बनवाया शाहजहा ने लेकिन अपने धन से नही बनवाया जनता के जमा धन से बने राजकोश से बन्वाया .दुसरे जब्रन मजुरी यानी बेगार करवायी गयी .तीसरे उसने निर्माण पुरा होने पर कारीगरो के हाथ काट दिये ताकि कोइ दुबारा एसी इमारत ना बनवा सके हालाकि मुझे इतिहास कि ज्यादा जान्कारी नही हे .हो ्सकता हे इतिहास वेत्ताओ की नजर मे इस घटना की प्रामाणीकता सन्दिग्ध हो .फ़िर भी ये एक जाना माना तथ्य हे .एक दरश्टी से तो ये लग्ता हे की एक महान बाद्शाह शाहजहा ने अपनी म्रत प्रेयसी मुमताज कि याद मे बडे प्रयत्नो से बनवाया .लेकिन मेरे द्रस्टीकोण से --अप्नी म्रत बीवी के लिये शान दार इमारत बन्वाना ओर फ़िर कई सो निर्दोश करीगरो के हाथ काट देना प्रेम का नहि क्रुरता का परिचायक हे .दर असअल यह व्यक्ति के अव्चेतन मे छुपी प्रसिधी व मह्त्वाकान्शा कि लालसा का परिचायक हे .कल को किसी कि बिवी या प्रेमिका या बिवी करवा चोथ पर नोलखा हार या कान्जीवरम की साडी मान्गे वो किसि कि जेब काट्कर या रिश्वत लेकर उसे पुरा कर दे वहा तक तो प्रेम माना जा सकता हे .लेकिन अगर किसि को मारकर लूट कर धन हासिल किया जाये तो क्या इसे प्यार कहेन्गे टीक एसे ही जिस इमारत के दामन पर इत्ने खुन के छीटे हो उसे प्रेम ्प्रतीक कह्ते शर्म क्यो नहि आनि चाहिये .जिस राजा ने अपनी म्रत बीवी के लिये बेगुनाहो को उ्नके हुनर कि सजा दी क्या वह एक प्रेमी ह्र्दय होगा .प्रेम मे तो कोम्लता ओर निश्चल्ता होती हे .अगर शाहजहा मे होति तो वो भी जफ़र या गालिब कि तरह शायर होते .लेकिन शाहजहा को तो सिर्फ़ पत्थरो से ही प्या र था.मेरा उद्देश्य शाहजहा की आलोचना करना नही हे .न ही मुझे पुरे मुस्लिम इतिहास मे खोट ेही खोट नजर आता हे ओर हिन्दु राजाओ मे अछ्छाईया ही अछ्छाईया .ना ही मे कोइ मार्क्स का तिमिर पुत्र (नेबुर ने कहा हे )हु जिसे हर चीज मे पुन्जीपतियो का शड्यन्त्र नजर आता हे ओर समाधान सरकार की भुमिका बडाकर ्सरकारी नोकरो व सत्ता के दलालो की तोन्द फ़ुलाने मे मे कोइ नयी बात नही कह रहा हु .इतिहास मे निम्न वर्गो (सबाल्टर्न एप्रोच) की भुमिका पर कही कोइ पर्काश नही दला जाता .निम्न वर्ग यानि कि जिन्को समाज हमेशा हाशिये पर रखता हे --गरीब,मजदुर,चरवाहे,वेश्याए,हिजडे,अपराधी आदी .अगर इन लोगो को यानि मज्दुरो ओर वास्तुकारो तथा सामान्य जन्ता को ध्यान मे रखा जाये तो ये उस समय मे भी बहुत बडी धन धनराशि (आज के करोडो मे )का अप्व्यय तथा कई सो निदोशो की विकलान्गता व बेगारी का का्रण बना .बचपन मे कही सुभाश चन्द्र बोस से का ताज्महल से जुडा सन्स्मरण कही पडा था . उन्की क्लास मे अध्यापक महोदय ने सब्को ताज्महल पर एक निबन्ध लिखने को कहा .उन्होने मात्र एक पक्ति लिखी ओर उटकर चले गये .उन्हे स्बसे ज्यादा नम्बर मिले .उन्होने जो लिखा उअसका भाव यो था -- उपर से बहुत खुबसुरत सी दीखने वाली ये इमारत ना जाने कितने बेगुनाहो के खुन से रन्गी हे . .....मे ले्ख मे दी गई घटनाओ कि प्रामाणीकता का दावा नही करता .्प्र्स्तुत उदाहरण भी मेरी जिर्ण -शीर्ण स्मर्ति पर आधारित हे . अगर लेख से सम्न्धित कोइ ग्यानवर्धक तथ्य य तर्क हो तो उन्का स्वागत हे .