6/02/2007

अर्धांगिनी

नारीवाद व महिला sashaktikarna को बढावा देने के लिए स्कुलो ओर कालेजो मे होने वाले विमाषा ओर वद्द विवादी ,निबंधो मे जुमले कि तरह दो उदाहरण भूत पेश किये जाते हे .एक तो
अर्धांगिनी
शब्द ,दुसरा यात्रा नारी पुज्यनते राम्नते तत्र देवता का । मेरी समझा मे ये दोनो हमारे गहरे तक शामिल प्त्र्सत्तावादी संसकारो के ही सूचक हे ना कि समानता के ॥ अर्धांगिनी शब्दा अच्छा हे पर ये भी नारी को पुरुष का आधा हिस्सा बताता हे यानी नारी कि याख्या पुरुष के हिस्से के रूप मे कि जाती हे .यानी अगर पुरुष ना हो तो नारी का आस्तिताव ही संभव नही हे क्योकि वो उसका आधा हिस्सा हे .मगर पुरुष के लिए एसा कोई शब्द नही हे कि वो नारी के शरीर का आधा हिस्सा हे । । अता सुच बात तो यही हे कि अर्ध्न्गिनी शब्दा नारी को वस्तु से ऊपर उठाकर अपने अनन्य हिस्से के रूप मे मान्यता देता हे पर फिर भी पुँ समानता का दर्जा नही देता .आत बार इसकी रत लगाना व इसके आगे अपने विच्रो को सम्पेरिशित ना कर पाना जहा शिक्षा मे रत्तेपन का सूचक हे वाही हमारी सोच कि सीमाओ का भी .

2 टिप्‍पणियां:

ghughutibasuti ने कहा…

विचार बहुत अच्छे हैं किन्तु भाषा में बहुत अधिक गल्तियाँ होने से अच्छा नहीं लगा ।
घुघूती बासूती

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत गहरी बात लिखी है। यह समझना sab ke बस की बात नही है। लेख लिखने के लिए बधाई।