9/26/2009

दलित महिलाये.

सवर्ण महिलाये परजीवी की परजीवी हे और दलित महिलाये गुलाम की गुलाम .

किस्मत

किस्मत तो उनकी भी होती हे जिनके हाथ नही होते.

हार-जीत

आप तब तक नही हराते जब तक की आप सचमुच अपने आपको हारा हुआ नही मान लेते.दोड़ मे की बार पहले आने वाले और अन्तिम स्थान वाले धावक का पता होता हे फ़िर भी विजेता तब तक घोषित नही किया जा सकता जब तक की दोड़ पुरी न हो जाए । यानि कभी घुटने न टेके आप तब तक नही हारते जब तक आप सचमुच हार नही जाते .

7/31/2009

आरक्षण

सामाजिक न्याय के दो मनको मानको मे विरोध हो तो उस मानक को अपनाना चाहिए जिससे समाज का ज्यादा भला हो । आरक्षण देते समय उसका पड़ विशेष और कर्तव्यों की डरती से भी अवलोकन करना चाहिए । मान लीजिये विधवाओं और विकालान्गोकोआरक्षण देना सामाजिक न्याय के अनुरूप हे। यदि कही दसवी पढाने के लिए शिषको की भरती हो और विधवा उमीदवार की कट ऑफ़ बहुत नीचे जाए आरक्षण की वजः से १०० मे से २० पर ही चयन हो जाए । तो विधवा के साथ तो न्याय हो जाए गा पर उन बचू के साथ न्याय हुआ जिन्हें वो पधाएगी । क्या सरकारी स्कुल मे पढ़ने का मतलब आरक्षण प्राप्त जातीय टीचर से पढ़ना हुआ। इसमे उस पड़ विशेष पर कार्य करने वाले की सेवाओ का लाभउठाने वाले समूह का भी ध्यान रखना चाहिए। आपदा पर्बंधन मे यदि विलांगो को आरक्षण देकर नियुक्ति दी जाए तो क्या ये उचित होगा । इसका पुरे समज आर पड़ने वाले समग्र प्रभाव का भी आकलन करना चाहिए.इस समस्या का समाधान या हो सकता हे की आरक्षण देते समय न्यनतम मानक भी निशिचत करने चाहिए उनसे अधिक विचलन कोस्वीकार नही करना चाहिए .अन्यथा समग्र रूप मे ये सामाजिक अन्याय का एक उपकरण सिद्ध होगा।

6/12/2009

गुर्जर--मीना

राजस्थान मे आरक्षण को लेकर बवाल मचा हुआ हे ।गुर्जरों का कहना हे की हमारी हालता मीणाओं की तुलना मे ख़राब हे । गुराजरो को दिया जाए या नही इस पर बहस चल रही हे । लेकिन जीके आदिवासी होने पर संदेह नही हे उनकी क्या हालत हे ---भील ,सांसी ,डामोर ,सहरिया । इन सची आदिवासियों का हिस्सा कोण खा गया हे । भूख से नारने की खबरे इन आदिवासियों मे से आती हे न की गुर्जर और मीणाओं से

आरक्षण

आरक्षण वो भी सरकारी नोकारियो मे ,के मुद्दे पर एक बात स्पष्ट हे की कोई भी व्यक्ति ,विद्वान निष्पक्ष नही रह paataa हे । अगर वो savarna हे to virodha ही karegaa or dalita या ओ बी cee से हे to samrthan ही karegaa.पर एक बात samjh मे नही आती ये digvijaya singh , arjun singh .or vee पी singh मे esaa क्या हे की ये इसका samrthan ही करते हे । शायद पुराने raajvansho से होने के कारण raajniti खून मे ही पायी जाती हे or raajniti का pahalaa sidaanta भी की futa daalo or raaj करो ।

6/09/2009

स्त्री-पुरूष

किसी ने बहुत गहरी बात कही हें .अगर मुक्त होंगे तो दोनों साथ होंगे वरना एक दुसरे की पराधीनता को मजबूत करेंगे।

5/21/2009

हिंसा की पवित्रता

हर कोई अपना पक्ष सही बताकर हिंसा को उ चित ठहरता हे पर इसके शिकार ज्यादातर निर्दोष ही होते हे । लंबे समय तक शत्रुता चलाने के बाद यह याद नही रहता की पहली गलती किसने की । की बार पीढियों से लड़ रहे लोगो जेसे कबीलों मे ,को यह याद नही रहता की वो लड़ क्यो रहे हे । पहली गलती छोड़कर लादी का कारन भी याद नही होता । बस लड़ रहे हे .पिछले ५-७००० सालो आदमी लड़ ही तो रहा हे । एक दुसरे के ख़िलाफ़ कभी यक्तिगत तो कभी कबीले परिवार या रास्त्र के रूप मे । लड़ने से समस्या हल हो जाती तो कबकी हो गा ई होती .युवाओ मे हिंसा के पार्टी कुछ ज्यादा ही आकर्षण पाया जाता हे । तात्कालिक रूप से कभी कभी ये फायदा भी पहुचा सकती हे पर इसे एक निति के रूप मे अपनाने के गंभीर परिणाम हो सकते हे । स्याम के पार्टी हिंसा की संभावनाओं से हमें शा आशंकित रहना । डर कर जीन तो कोई अची जिंदगी नही हे
.ves e bhi jo svayam ko

बेटी--बहु

भारतीय मध्य वर्ग की बड़ी अजीब विडम्बना हे । जब बहु धुधाने जात एहे तो चाहते हे की इसी बहु मिले जो भुधापे मे चन से दो रोटी रख दे और दुत्कारे न । यानि संयुक्त परिवार के लिए ठीक हो और उन शर्तो को मानाने के लिए राजी हो । पर जब बेटी के लिए रिश्ता देखने जाते हे तो कोशिश यही करतेव हे की लड़का एसा मिले जिस पर माँ बाप और छोटे भाई बहनों का भर न हो । ये दोनों बातें एक साथ सही केसे हो सकती हो । .बहु धुन्द्ते समय सम्मने वाले पक्ष को ग़लत नही ठराया जा सकटा और बेटी ब्याहते समय अपने आपको । हे पर हकीकत हमारे समज की । सब वाही पर दूसरो मे खामी या गलतिया निकलते हे

फिराक

नंदिता दास बड़ी गहरी अभिनेत्री हे । अत उनकी बनायी फ़िल्म से भी बड़ी उमीदे थी । पर इतनी एकपक्षीय फ़िल्म आज तक नही देखि । फ़िल्म मे सब सही हे । पर ये सब कोई हुआ और इनकी शुरुआत के लिए भी कोई चिंगारी कहा से आई । हद हे की पुरी फ़िल्म मे गोधरा तरणमेजलाये जाने की घटना तक का उल्लेख भी नही किया गया हे । इसे देखकर तो लगता हे की इतना गंभीर अन्याय एकपक्षीय होता और मे एक मुस्लिम होता और मे सिर्फ़ फ़िल्म को अन्तिम सत्य मानता तो आतंकवादी बन सकता था । ये तो वाही बात हे की आप एक पक्ष को बिल्कुल निर्दोष दिखाकर दूसरो के पार्टी हिंसा के लिए प्ररित कर रहे हे .
खुदा के लिए और ब्लेक एंड व्हाईट देखिये .पता नही नंदिता को क्या हो गया हे । सिर्फ़ पशिमी आलोचकों की पर्शंशा पाने के लिए वाकई उनकी आँखों पर बड़ा मोटा चश्मा चढ़ गया हो या फ़िर मेरी आँखों पर की सच दिखाई नही देता ।

चुनाव

योगेन्द्र यादव ने अपने लेखो मे भारतीय चुनावो से जुड़े कई मिथक तो०दे हे । मुस्लिम मतदाताओ का मत पर्तिशत भी अन्य के सामान ६० पर्तिशत के आस पास ही रहता हे । युवा पशिमी युवाओ से अलग हे वहा संयुक्त परिवार नही होते । यहाँ युवा समाज की मुख्य धारा और परिवार से जुड़े होते हे । अत उनके वोट भी लगभग सामान्य परवर्ती दर्शाते हे .जाती आधार पर मतदान निर्णायक नही होता । । ये फायदा जरूर करता हे .

वेबसाईट सूची आई ऐ एस के लिए

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5/09/2009

वर्जिन

समाज मे badi तेजी से हो बदलाव हो रहे हे ।युवा वर्ग की मानसिकता के बारे मे अगर एक लाइन मे कहा जाए तो कहा जा सकता हे की -If a man is virgin it means lack of opportunity ,if a female is virgin it means she didnot make the ओप्पोर्तुनिटी। इस बात से ये भी पता लगता हें की लड़किया या महिलाये अभी भी पुरुषों की तुलना मे ज्यादा नेटिक होती हें ।

मुफ्त का वेतन

सरकारी कर्मचरियो को हर महीने मुफ्त का वेतन देने के बजाये सरकार को उनके काम के अनुरूप टार्गेट और इन्सेन्टिव बेस्ड वेतन देना चाहिए । ऐस बी आई जेसे बेंको की कार्य प्रणाली मे इससे बदलाव देखा जा सकता हे .अन्य विभागों मे टारगेट तो दिए जा रहे हे पर वेतन को इससे नही जोड़ा जा रहा हे.फिक्स वेतन के बजाये इन्सन्तिवे को अनिवार्य बनाये बिना आम आदमी को होने वाली परेशानी और चक्करों से मुक्ति नही मिलेगी । .इससे भ्रस्टाचार भी कम होगा .

1/27/2009

एलन --कोटा

कल पेपर मे ख़बर पढ़ी । कोटा राजस्थान के पी एम् टी ,आई आई टी , पी ई टी की तयारी करवाने वाले एलेन कोचिंग संस्था ने घोषणा की हे की वो आतंकवाद की लड़ाए मे शीद हुए परिवारों के बच्चो को मुफ्त पढायेंगे ।

kismat

किस्मत
हाथ की लकीरो को मत देख नादान किस्मत तो उनकी भी होती हे जिनके हाथ नही होते.

1/16/2009

इसरायल -फिलिस्तीन विवाद

माइकेल वाल्ज्र का कहना हे की फिलिस्तीन मे चार युद्ध चल रहे हे .१इज़रयल को नष्ट करने के लिए फिलिस्तीनियों का युद्ध २ नया फिलिस्तीनी राज्य बनाने के लिए फिलिस्तीनियों का युद्ध ३.वर्ह्त्तर इजरायल बनाने के लिए इसरायल का युध ४.इस्रायल के आस्तित्व को बनाए रखने एस्थाई करने और फिलिस्तीनी समस्या का समाधान करने के लिए युध । । इनमे से दूसरा और चोथा नेतिक या न्याय युक्त हे बाकि अनेतिक या अन्याय युक्त .

8/17/2008

पूँजीवाद

सर्जनात्मक पूँजीवाद दुनिया से गरीबी और अभावो को कम करने में मदद कर सकता हे । इंसान सिर्फ़ अच्छा होता तो समाजवाद और आदर्शवाद से ही काम चल जाता .बहुत बुरा होता तो पूंजीवाद भी काम नही कर पा ता .आर्थिक लाभ के बिना पेरना नही मिलती .सरकारी नोकरिया इसीलिए आरामतलबी और ब्र्स्ताचारो के अधिकार की पर्याय बन गयी हे .चीन ने भी बाजार समाजवाद का रास्ता अ पना कर हजारो को गरीबी की रेखा से निकला हे .

8/08/2008

हिंदू फासीवाद

भारत मे घट रही घटनाये और सरकार की तुस्टीकरण की नीतिया भविष्य मे नई समस्याए पैदा करेंगी .सभी मुसलमानों को इसके लिए उत्तरदायी ठहराया जाना और आम हिंदू मे इसका स्वीकार खतरनाक हे । कोई भी धूर्त नेता गुमराह मुसलमान नवयुवको की तरह हिंदू युवको को भी गुमराह जे कर सकता हे । इससे हिंसा प्रतिहिंसा का लंबा दोर चलेगा जिससे भला किसी का नही होगा । .सिर्फ़ दोनों और से निर्दोष लोग शिकार होंगे बढ़ता हुआ भारत रुक भी सकता हे । । सरकार को दोनों और के असंतोष के निवारण के उपाय करने होंगे । सिर्फ़ sohard की बातें करने से काम नही चलेगा । आतंकवादियों के प्रति कडी कारवाई भी जरुरी हे ।

बम

बम फोड़ने वाले निर्दोष हे और मरने वाले दोषी । । गुमराह नवयुवक हे । सिमी रस्त्रवादी संगठन हे क्योकि लालू और मुलायम जेसे लोगो को सुरक्षा मिलती हे । उनके घर का कोई सदस्य तो नही मरा । मरे तो आम आदमी ही हे । अगर ख़ुद के बीवी बच्चे मर जाए तब भी ये लोग सिमी का समर्थन ही करेंगे । नेता होने का मतलब यही हे जिसकी अंतरात्मा मर गयी हो । कितनी बेशर्मी के साथ खुलेआम वोट बेंक के लिए समर्थन किया । आम मुसलमान की आवाज कही नही हे. उसे । १० और २० पर्तिशत कट्टरपनथियौ ने दबा दिया हे । हिंसा सिर्फ़ प्रतिहिंसा को पैदा करती हे । हिंदू आतंकवाद कोई नयी बात नही रह गयी हे ।

जाने तू

एक अच्छी फ़िल्म हे .मसला मूवी हे पर बोगौस फिल्मो से तो अच्छी हे । अभी अगली और पगली फ़िल्म देखकर पक गया .पता नही क्या सोचकर बना देते हे । कॉमेडी फ़िल्म और एक बार भी हसी नही चली जुगुप्सा के भावः पैदा होते हे । जाने तो मे नायक के पास मोबाएल नही होना खटकता हे .दोस्तों मे एक दुसरे को चाहना फ़िर जो मिले उसे ही स्वीकार कर लेना एक हकीकत हे । कुल मिलाकर पर्योगो के नाम पर कचरा ही जयादा बन रहा हे । दे तली और अगली पगली देखकर दिमाग घूम जाता हे । इन लोगो का हसी का सेंस कमजोर हे । जो लोग असली जिंदगी मे ख़ुद किसी को न हँसा पते हो या ज्याददा हसने की आदत न हो। वो हसी के फूहड़ता और व्बेव्कूग्फी का पर्याय समझा लेते हे

7/21/2008

pyar

एक चिडिया को एक सफ़ेद गुलाब से प्यार हो गया , उसने गुलाब को प्रपोस किया ,गुलाब ने जवाब दिया की जिस दिन मै लाल हो जाऊंगा उस दिन मै तुमसे प्यार करूँगा ,जवाब सुनके चिडिया गुलाब के आस पास काँटों में लोटने लगी और उसके खून से गुलाब लाल हो गया,ये देखके गुलाब ने भी उससे कहा की वो उससे प्यार करता है पर तब तक चिडिया मर चुकी थीइसीलिए कहा गया है की सच्चे प्यार का कभी भी इम्तहान नहीं लेना चाहिए,क्यूंकि सच्चा प्यार कभी इम्तहान का मोहताज नहीं होता है ,ये वो फलसफा; है जो आँखों से बया होता है ,ये जरूरी नहीं की तुम जिसे प्यार करो वो तुम्हे प्यार दे ,बल्कि जरूरी ये है की जो तुम्हे प्यार करे तुम उसे जी भर कर प्यार दो,फिर देखो ये दुनिया जन्नत सी लगेगी

5/15/2008

मे भी बम फ़ोड दु मेरे साथ अन्याय हो रहा हे

बम फ़ोड्ने से निर्दोशो  को मारने से क्या किसी समस्या का समाधान हो जायेगा.अन्याय ओर शोशण कोन नही कर रहा हे .पर खुद के द्वारा किया गया अन्याय नजर नही आता. आतन्क्वादी अन्याय के खिलाफ़ नही लड रहे वो तो पुरी दुनिया को अपने हिसाब से बद्लना चाहते हे .ओसामा ने ये स्पस्ट कहा हे कि वो पुरी दुनिया मे खुदा क राज चाहता हे .बाकि जगह भी लोग शरीयत को लागु करने पर अड जाते हे . ये वही लोग हे जो हर जगह पाये जाते हे --फ़न्डांमे्न्ट्लीस्ट-या आमुल प्रमाणवादी .चाहे वो केथोलिक हो चाहे कट्टर यहुदी या हिन्दु धर्म को मुस्लिम धर्म की तरह मिलिटॆन्ट धर्म बना देने वाले समुह . अन्तर इतना हे कि हिन्सा को वेधता कही भी प्राप्त नही हे सिवाय मार्क्स्वादियो,फासीवादियो और सामी धर्मो के .इनके  समर्थक जेहाद कि अवधारना कुरान मे पाये जाने का तो विरोध करते हे पर ये नही बताते कि कहा अन्य धर्मो के समान दया करुणा ओर परोपकार की बाते लिखी हुए हे  . सम्स्या यही हे हिन्सा की वेधता ओर अन्तिम सत्य को जानने का दावा जो किसी भी तरह के तर्क वितर्क ओर बहस को अस्वीकार करता हे .सत्य हमेशा मानवीय द्र्श्टीकोन पर निर्भर करता हे .इसीलिये महावीर स्वामी को पेड -पोधो मे जीवन नही दिखाई दिया ओर उन्होने इसे शाकाहार माना . तब तक इन्मे जीवन प्रमाणित  नही हुआ था.बुद्ध बीवी को त्यागकर  सन्यासी हो गये और किसी ने उन पर बीवी बच्चो को बेसहारा करने का आरोप भी नहीं लगाया  .ओर मुस्लिमो तथा इसाइयो को मान्साहार मे कुछ अन्याय नजर नही आता खुद पर अन्याय की दुहाई देते समय . जेसे निर्दोशो को मारने का लाइसेन्स इनके पास हे .जेसे अमेरीका के पास हे जापान मे परमाणु बम फ़ोडने का ओर इराक पर कब्जा जमा लेने का .अन्तिम सत्य को जानने का दावा करने वाला कोइ भी आदमी जाने या अन्जाने मे मानवता के प्रति अपराधी हे चाहे वो कोई भी हो . . अब आगे लिखते हुए मेरी भी फ़ट रही हे कही मुझे भी बम से उडा दे तो . सबसे सेफ़ तो गान्धीजी ओर महावीर स्वामी की आलोचना हे क्योकि ये अहिंसा को मानते हे और इनके अनुयायी अगर आलोचना करने पर हिंसक विरोध करते हे तो खुद ही गलत हे . पर सबकी भावनाये आहत होते देख उन्की भी भाव्नाये आहत हो सकती हे  . हो सकता हे इनको लगे की हमारे साथ अन्याय हो रहा हे .अहिन्सा को कोइ मान हि नही रहा तो ये भी बम फ़ोड दे. तस्लीमा का हश्र तो देख ही रहे हे ना.दरअसल सही और गलत की पहचान करना इतना आसान नहीं हे. हर कोई गांधीजी की तरह नहीं हो सकता जिन्होंने अंग्रेजो का विरोध करते हुए भी जापान और जर्मनी जेसी फासीवादी ताकतों की सही पहचान करते हुए उनका सहयोग लेना गवारा नहीं समझा.कही ना कही कम या ज्यादा अर्थो में हम किसी न किसी रूप में कुछ गलत चीजो या अन्याय का हिस्सा होते हे और किसी न किसी रूप में पीड़ित भी होते हे. दूसरो को बदलना हमारे बस में नहीं हे पर जहा कही भी हम गलत चीजो का हिस्स्सा बनने से अपने आपको बचा सके,यही जरुरी हे.वो चाहे पुरुष के रूप में स्त्रियों के पर्ती यवहार हो, बड़ो के रूप में बच्चो के प्रति.बच्चो के रूप में बड़ो के प्रति, मालिक के रूप में नोकरो के प्रति चाहे जिस रूप में पर यही एक आसन तरीका हे जिसे बिना किसी को बदले खुद के प्रति थोडा सा अवेयर होते हुई पालन किया जा सकता हे और ईश्वर की बनायी हुई इस खुबसूरत दुनिया को और बेहतर बनाया जा सकता हे.

5/12/2008

दोहरापन

पारिवारिक मुल्यो के पतन पर सभी चिन्ता जाहिर करते हे .पर बडी मजेदार बात ये हे की --बेटे के लिये बहु डुन्ड्ते समय मा बाप सन्सकारी ओर सयुक्त परिवार को निभाने वाली बहु चाहते हे पर बेटी के लिये रिश्ता डुन्ड्ते समय बिना मा बाप की झन्झट की न्युक्लियर फ़ेमिली चाह्ते हे .

बचपन-शेर



  • बुन्दो से बना हुआ छोटा सा समन्दर .लहरो से भीगती छोटी सी बस्ती .चल डुन्डे बारिश मे बचपन का साहिल .हाथ मे लेकर कागज की कश्ती.

5/07/2008

गरीबी

अमीरो से नफ़रत करते करते कभी कभी लोग अमीरी से भी नफ़रत करने लग जाते हे ओर जिन्दगी भर गरीब बने रहने का फ़ेसला कर डालते हे .

गुगल टार्न्सलेशन

आज इसे इसे युज करके देखा .बडा ही गन्दा अनुवद हे .सिर्फ़ अनुवादको के लिये ही सही हे .आगे हो सकता हे ओर सुधार हो . खेर कुछ ना होने से कुछ तो अच्छ आ हे .

4/07/2008

टिकेट

मायावती टिकेट मामले ने साबित कर दिया हे की कानून सिर्फ़ किताबो मे HI हे .जब मायावती जी अपशब्द कहने पर टिकेट साहब को नही गिरफ्तार करवा सकी बल्कि पुरी पलटन लगानी पड़ी तौः साधारण गाँव मे रहने वालो का क्या हाल होता होगा । । आरक्षण के -पक्ष विपक्ष मे तर्क जारी हे पर दलितों पर अत्याचार के खिलाफ ये लोग आवाज नही उठाते क्यौकि सहने वाले दलित इनमे से नही हें । इनमे तो वो शामिल हे जो १० वी भी नही पढ़ आये हे । जबकि लाभ अंगरेजी +शहरो मे बोलंने वालो को हो रहा हे .टिकेट की गिरफ्तारी का नाटक हमारी कानून व्यवस्था की लाचारी को दिखाता हे

3/25/2008

सिविल सेवा साक्षात्कार -टिप्स

सिविल सेवा यानि के मै आई ए एस के साक्शात्कार के विशय मे लिख रह हु .अनुभवी लोगो कि बातो से कुछ टिप्स निकलते हे जिनका ध्यान रखना जरूरी हे----आगे जाकर ये लेख बहुत से नेट -प्रेमी अभ्यर्थियो के लिये उपयोगी हो सकता हे .१-try to be open dont be transparent 2 prepare your graduation subjects 3 dont tell a lie until it is too necessary .4 be honest --dont try to be too ideal 5 hobby ----should be real ---regularity ,good knowledge 6dont show any political bisenes ......7 they are searching ability with honesty 8 this the interview for top post not irs or irts so if they tease you it means they are trying to catch your best 9 knowledge is also part of your personality --ego problem+frustration is also there so it is not only about personality may some times 60-70 percent interview based on knowledge .अंग्रेजी मे लिखने के लियेशामा चह्ता हु पर मुझे लगा कि इसमे ज्यदा सटीक ढंग से बात रख पाउंगा .
योग्यता
अभिरुचि
जानकार/विद्वान;जानकारी
ओ{अंग्रेज़ीवर्णमाला~का~पन्द्रहवाँ~अक्षर};ओह!;का{'ऑफ' का संक्षिप्तीकरण}
प्रस्तुतीकरण

3/20/2008

जिन्दगी--चाय का एक कप हे

जिन्दगी चाय के एक कप की तरह ही . ज्यादा जल्दी करने पर जलने का खतरा रहता हे देर करने पर पीने मे मजा नही आयेगा . ठंडी हो जायेगी .हमेशा कप को ही ज्यदा कस कर पकडोगे तो चाय कि क्वलिटी पर कभी ध्यान नही जायेगा .कप टुट गया तो कपडे तो खराब होन्गे ही सब्को पता भी लग जायेगा.pite samya jor se sudakne ki aavaj nikaloge to ye behudgi hogi .aavaj na niklne ke chkkar me bilkul dhre dhre piyoge to thandi hone ke sath sath samne vala bhi kab tak intjaar karegaa . ghnte bhar me chay pita हें . isliye chay vese piyo jese chay pi jati हें .jindgi vese jiyo jese ji jati हें bina soch vichar kiye sahaj swabhavik parvah me .na dusro ko dikhane की jaldbaji na dusro ke dekhne ka dar .or aapko achee chay pilaye use jindgi me kabhi avoid na kare क्योकि वाही लाइफ की क्वालिटी मेंटेन करने मी आपकी मदद कर रहा हे .