2/21/2007

जिन्दगी--केरियर/वर्तमान --भविश्य कि दुविधा?????????

जिस बात पर आज्कल लोग ज्यादा जोर दे रहे हे वो हे आज मे जीना.हर पल जीना पुरी शिददत के साथ.हर पलको जी्ना पुरे स्वीकार भाव के साथ.क्योकि जीवन इन्ही चोटे चोटे पलो ,शनो को मिला कर बनता हे . जिन्दगी को जीना ओर पुरी ईमान्दारी के साथ?क्या ये सम््भव हे?मेरी समझ मे इसमे इतनी इमान्दारी वाली बात नही हे .आजकल की पीडी इस आज ओर कल के दन्द मे उलझी हुई हे.सिर्फ़ आज मे जीओगे तो केरीयर की चिन्ता कोन करेगा.फ़ल की चिन्ता किये बिना कर्म करते जाने की बात गीता मे वर्त्मान को परिशर्म कि आग मे झोक देने ओर कल के सुखद भविश्य को आज के साथ जीते हुए प्राप्त कर्ने क लिये ही कही गई हे.जो बात जो बात आज सब कर रहे हे वो आज मे जीने की बात हे. पर मेरि सम्झ मे ये अधुरा दर्शन भी हे ओर खतरनाक भी.मेरी समझ मे कल के साथ साथ आज को जीने कि सोच बेहतर हे . दरअसल आज मे जीने का मत्लब ही यही हे की तुम अभि जो कर रहे हो उसमे दूब जओ.अपने ्कार्य को पुरी लगन ओर समर्पन से पुरा करो.कुल मि्ला कर जो काम आप करते हे उसी मे आन्द ले.चहे वो अद्ययन हो या डान्स.युव सामन्यत आज मे जीन ्का मतलब --मस्ती,डान्स,सेक्स,पाट्री,..फ़लर्टिन्गे एक से ज्यदा प्रेम सम्बन्ध,से ही लेते -हे .मे कोइ बुडा नही हु जो इन सब बातो पर कोइ उप्देश दे रहा हु.न ही कोइ पर्म्परावादी हु जिन्हे लग्ता हे की इन लड्कियो ने छोटे छोटे कपडॆ पहन्कर सारी सभ्यता ओर सन्स्कर्ती का नाश कर दिया. पशिम कि ्बार्बी गुदिया को कपडे पह्नने से इस्लाम कि रक्शा हो जायेगी.तभी तो पकिस्तान मे हदुद ला के तहत ब्लत्कार कि शिकार महीला को चार पुरुश गवाह न मिल्ने कुल्टा तहराकर जेल मे सदने कए लइये दाल डिया जता था. अभि हालही मे य ह कानुन रद्द हुआ हे.मुस्लिम कह सकते हे कि आप हमारी ओरतो के पीचे क्यो पडे हे.यहि तो सम्स्या हे--हमारी ओरते तुम्हारी ओरते.मानो ओरते इन्सानह ही नही हे?अगर हे तो उन्के बारे मे सोच्ने ओर बोल्ने क हक हर किसी को हे.अप्ने देश ्भारत मे भी पुरुशो को छोड्कर महीलाओ की भी कमी नही हे जो सोच्ती ओर की बार बोल्ती भी हे की ब्डते बलत्कारो की वजह---लद्कियो के भड्काउ कपडे हे.पित्र्सतवाद के सन्स्कार कित्अने गहरे तक घुसे हुए होते हे.कितना बीईमानी भरा तर्क हे.इस्का सीधा मत्लब हे की अगर तुम असे कप्दे पहन्कर बाहर निकल्ती हो तो किसि भी पुरुश को तुम्हरे साथ बलात्कार करअने क अधिकार हे?????मफ़ किजिये मे लिख्तेलिख्ते भटक ज ता हु. मन मे दब गुस्सा भ्हर आ जता हे .ह ह i m not female .मेतो २६ साल का मन्मोजी तन्द्रुस्त नोजवान हु.ह तोमु लबात प र आते .आज मे जीने की बात .सम्स्या का समधान तो गान्धी जी ने बहुत पहले ही दे दिया था .------जियो तो एसे जेसे कल ही हो अन्त सीखो तो एसे जेसे जीवन हो अनन्त.

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

आपने युवा मन की बाते लिखी है, अच्छा लिखा है. खास कर अंतिम पंक्तियाँ बहुत सुन्दर है.

लगता है अभी आप टंकण (टाइप) करना सीख रहे है, अभ्यास जारी रखे.

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

अच्‍छा लिखा है। बहुत अच्‍छा