9/26/2009

दर्शनशास्त्र

आम तोर पर लोग जहा से सोचना बंद करते हें दर्शनशास्त्र मे लोग वहा से सोचना शुरू करते हें । अगर किसी को अपने ज्ञान पर कुछ ज्यादा ही घमंड हें और उसने दर्शन कभी पढ़ा नही तो ये जायज नही होगा । सुकरात ने कहा भी हें की जो अपने अज्ञान की सीमाओं को जानता हें वही ज्ञानी हें । यानि जो gayn की अज्ञानता को जानता हें.लादेन भी एक एन्ज्नीयर था .अधिकांश इसे लोग जो कट्टरवादी मान्यताओ से गर्स्त होते हें वो की बार उच्छ शिक्षित होते हें पर ,मानविकी मे नही बल्कि वैज्ञानिक विषयों मे । जिनमे निश्चित ज्ञान का दावा किया जाता हें । जबकि सामाजिक विषयों मे अध्ययन द्वंदात्मक होता हें .इसलिए इसे लोगो के कतार्पंथी बनने की संभावना कम होती हें.

1 टिप्पणी:

समय ने कहा…

सही कहा।
अधिभूतवादी चिंतन ही मनुष्य को कट्टरपंथी बनाता है।