3/10/2011

में भी बम फोड़ दू मेरे साथ अन्याय हो रहा हे

बम फ़ोड्ने से निर्दोशो को मारने से क्या किसी समस्या का समाधान हो जायेगा.अन्याय ओर शोशण कोन नही कर रहा हे .पर खुद के द्वारा किया गया अन्याय नजर नही आता. आतन्क्वादी अन्याय के खिलाफ़ नही लड रहे वो तो पुरी दुनिया को अपने हिसाब से बद्लना चाहते हे .ओसामा ने ये स्पस्ट कहा हे कि वो पुरी दुनिया मे खुदा क राज चाहता हे .बाकि जगह भी लोग शरीयत को लागु करने पर अड जाते हे . ये वही लोग हे जो हर जगह पाये जाते हे --फ़न्डांमे्न्ट्लीस्ट-या आमुल प्रमाणवादी .चाहे वो केथोलिक हो चाहे कट्टर यहुदी या हिन्दु धर्म को मुस्लिम धर्म की तरह मिलिटॆन्ट धर्म बना देने वाले समुह . अन्तर इतना हे कि हिन्सा को वेधता कही भी प्राप्त नही हे सिवाय मार्क्स्वादियो,फासीवादियो और सामी धर्मो के .इनके समर्थक जेहाद कि अवधारना कुरान मे पाये जाने का तो विरोध करते हे पर ये नही बताते कि कहा अन्य धर्मो के समान दया करुणा ओर परोपकार की बाते लिखी हुए हे . सम्स्या यही हे हिन्सा की वेधता ओर अन्तिम सत्य को जानने का दावा जो किसी भी तरह के तर्क वितर्क ओर बहस को अस्वीकार करता हे .सत्य हमेशा मानवीय द्र्श्टीकोन पर निर्भर करता हे .इसीलिये महावीर स्वामी को पेड -पोधो मे जीवन नही दिखाई दिया ओर उन्होने इसे शाकाहार माना . तब तक इन्मे जीवन प्रमाणित नही हुआ था.बुद्ध बीवी को त्यागकर सन्यासी हो गये और किसी ने उन पर बीवी बच्चो को बेसहारा करने का आरोप भी नहीं लगाया .ओर मुस्लिमो तथा इसाइयो को मान्साहार मे कुछ अन्याय नजर नही आता खुद पर अन्याय की दुहाई देते समय . जेसे निर्दोशो को मारने का लाइसेन्स इनके पास हे .जेसे अमेरीका के पास हे जापान मे परमाणु बम फ़ोडने का ओर इराक पर कब्जा जमा लेने का .अन्तिम सत्य को जानने का दावा करने वाला कोइ भी आदमी जाने या अन्जाने मे मानवता के प्रति अपराधी हे चाहे वो कोई भी हो . . अब आगे लिखते हुए मेरी भी फ़ट रही हे कही मुझे भी बम से उडा दे तो . सबसे सेफ़ तो गान्धीजी ओर महावीर स्वामी की आलोचना हे क्योकि ये अहिंसा को मानते हे और इनके अनुयायी अगर आलोचना करने पर हिंसक विरोध करते हे तो खुद ही गलत हे . पर सबकी भावनाये आहत होते देख उन्की भी भाव्नाये आहत हो सकती हे . हो सकता हे इनको लगे की हमारे साथ अन्याय हो रहा हे .अहिन्सा को कोइ मान हि नही रहा तो ये भी बम फ़ोड दे. तस्लीमा का हश्र तो देख ही रहे हे ना.दरअसल सही और गलत की पहचान करना इतना आसान नहीं हे. हर कोई गांधीजी की तरह नहीं हो सकता जिन्होंने अंग्रेजो का विरोध करते हुए भी जापान और जर्मनी जेसी फासीवादी ताकतों की सही पहचान करते हुए उनका सहयोग लेना गवारा नहीं समझा.कही ना कही कम या ज्यादा अर्थो में हम किसी न किसी रूप में कुछ गलत चीजो या अन्याय का हिस्सा होते हे और किसी न किसी रूप में पीड़ित भी होते हे. दूसरो को बदलना हमारे बस में नहीं हे पर जहा कही भी हम गलत चीजो का हिस्स्सा बनने से अपने आपको बचा सके,यही जरुरी हे.वो चाहे पुरुष के रूप में स्त्रियों के पर्ती यवहार हो, बड़ो के रूप में बच्चो के प्रति.बच्चो के रूप में बड़ो के प्रति, मालिक के रूप में नोकरो के प्रति चाहे जिस रूप में पर यही एक आसन तरीका हे जिसे बिना किसी को बदले खुद के प्रति थोडा सा अवेयर होते हुई पालन किया जा सकता हे और ईश्वर की बनायी हुई इस खुबसूरत दुनिया को और बेहतर बनाया जा सकता हे. ( ये एक साल भर  पुरानी पोस्ट थी जिसे थोडा सा एडिट करके आज मेने वापस पोस्ट किया हे)