10/14/2010

हिंसा की पवित्रता

हिंसा की पवित्रता -- हिंसा के प्रति अनुराग सभी समाजो मे पाया जाता हें लकिन कुछ समाजो मे ये जयादा पाया हें .खासकर के ESE समाजों मे सत्य की एक्वादी अवधारणा पायी जाती हें.इसीलिए हिंसा के पार्टी मोह एसा समाजो मे ज्यादा पाया जाता हें.चीजो को सिर्फ सही और गलत नजरिये से देखना ठीक नहीं हें . सही और गलत के आलावा और भी bahut से दर्श्तिकोना हो सकते हें.सत्य की एक्वादी अवधारणा मे  एक तरह की एक्स्क्लुसिव्नेस आ जाती हें जो अपने आपको सही और दूसरो को गलत मानती हें. यह किसी भी धर्म  संस्कर्ति विचारधारा मे हो सकता हें .सभी सामी धर्म (मुस्लिम,इसाई,यहूदी) मे तो यह अवधारणा पायी हि जाती हें . पहले मे यह समझता था की हिन्दू धर्म मे हिंसा का प्रावधान नहीं हें पर बाद मे मेने अमर्त्य सेन के जस्टिस मे महाभारत मे हिसा पर्तिहिंसा की प्रासंगिकता के बारे मे तर्क पढ़े तो गीता का मुख्या उपदेश यही लगा किहिंसा के बदले पर्तिहिंसा करना उचित हें. आधुनिकताकी अवधारणा ने भी यही किया की manushayaa ke sahi or galat me sochne ki parvarti ko or pukhataa kar diya . sampradaayikataa or धार्मिक संघर्षो पर अध्ययन करने वालो ने ये बताया हें की इस तरह की एक्स्क्लुसिव्नेस आधुनिकता के बाद हि धर्मो मे आई .हिंशा को उचित ठहराते समय हम अकसर अपने सही होने का तर्क देते हें और पर्तिहिंसा को उचित टहराते हें .

10/11/2010

आद्शवाद

मेरी समझ मे आदर्शवाद से ज्यादा खतरनाक कोइचीज  नहीं हें।आद्शवाद सत्य
 की अवधारणा पर टिका हुआ है।

10/05/2010

प्यार

प्यार मे  आदमी गुलाम हो जाता हें और शादी मे गुलाम बनाने की कोशिश करता हें.when people fall in love they become slave but when they get married with someone they treat their spouse like a slave .

वृध

फल ना देगा ना सही,छाव तो देगा तुम्हे, पेड़ बूढ़ा हि सही आँगन मे लगा रहने दो.