11/21/2009
दो नावो की सवारी
किसी ने सही कहा हे की एक साथ कई सारे काम नही कराने चाहिए। वरना किसी भी काम मे हम अपना पुरा समपर्ण नही दे पाते और काम बिगड़ जाते हे या उनमे एक प्रकार की कामचलाऊ पण आ जाता हे । .काफी दिन हो गए लिखे हुई सोचा कुछ तो लिखता हु.
9/26/2009
दर्शनशास्त्र
आम तोर पर लोग जहा से सोचना बंद करते हें दर्शनशास्त्र मे लोग वहा से सोचना शुरू करते हें । अगर किसी को अपने ज्ञान पर कुछ ज्यादा ही घमंड हें और उसने दर्शन कभी पढ़ा नही तो ये जायज नही होगा । सुकरात ने कहा भी हें की जो अपने अज्ञान की सीमाओं को जानता हें वही ज्ञानी हें । यानि जो gayn की अज्ञानता को जानता हें.लादेन भी एक एन्ज्नीयर था .अधिकांश इसे लोग जो कट्टरवादी मान्यताओ से गर्स्त होते हें वो की बार उच्छ शिक्षित होते हें पर ,मानविकी मे नही बल्कि वैज्ञानिक विषयों मे । जिनमे निश्चित ज्ञान का दावा किया जाता हें । जबकि सामाजिक विषयों मे अध्ययन द्वंदात्मक होता हें .इसलिए इसे लोगो के कतार्पंथी बनने की संभावना कम होती हें.
आतंकवाद एक टेक्निक
कुछ विद्वान आतंकवाद को भी अन्याय से लड़ने की तकनीक मानते हे .मेरा मत हे की एसा कुछ ही मामलों मे सही हो सकता हे .जिन्हें पीड़ित रास्तीयाताये मानकर हिंसा को उचित ठहराया जा सकता हे। पर अल कायदा आतंकवाद -मुस्लिम विश्वव्यापी आतंकवाद को नही । क्योकि उनके पास किसी just सोसाइटी का विचार नही हे.वो तो अपनी कट्टर धार्मिक मान्यताओं के आधार पर शरीयत जेसा देवीय शाषन चहाते हें। uसकी व्याख्या का अधिकार भी उनके पास ही हें .ख़ुद पर शासन करने के अन्य लोगो के अधिकार को भी वे नही मानते .उन्हें अपने अनेतिक कार्यो के लिए अमेरिका की भाति किसी wmd वेपन जेसे मुखोटे की भी जरुरत नही हें । स्पस्ट हें की आतंकवाद का यह रूप ही विश्वशांति के लिए खतरा हें न की अन्य स्थानीय पक्र्ती के आन्दोलन .और इसे किसी भी आधार पर justify नही किया जा सकता .इसे उचित ठहराना इसमे व अन्य जायज हिसात्मक आंदोलनों मे फर्क न कर पाने के कारण हें । मार्क्सवादी चश्मे से तो ख़ुद को मारने आया किक्लर भी सामाजिक परिस्थीथीका उत्पाद नजर आता हें .
हार-जीत
आप तब तक नही हराते जब तक की आप सचमुच अपने आपको हारा हुआ नही मान लेते.दोड़ मे की बार पहले आने वाले और अन्तिम स्थान वाले धावक का पता होता हे फ़िर भी विजेता तब तक घोषित नही किया जा सकता जब तक की दोड़ पुरी न हो जाए । यानि कभी घुटने न टेके आप तब तक नही हारते जब तक आप सचमुच हार नही जाते .
7/31/2009
आरक्षण
सामाजिक न्याय के दो मनको मानको मे विरोध हो तो उस मानक को अपनाना चाहिए जिससे समाज का ज्यादा भला हो । आरक्षण देते समय उसका पड़ विशेष और कर्तव्यों की डरती से भी अवलोकन करना चाहिए । मान लीजिये विधवाओं और विकालान्गोकोआरक्षण देना सामाजिक न्याय के अनुरूप हे। यदि कही दसवी पढाने के लिए शिषको की भरती हो और विधवा उमीदवार की कट ऑफ़ बहुत नीचे जाए आरक्षण की वजः से १०० मे से २० पर ही चयन हो जाए । तो विधवा के साथ तो न्याय हो जाए गा पर उन बचू के साथ न्याय हुआ जिन्हें वो पधाएगी । क्या सरकारी स्कुल मे पढ़ने का मतलब आरक्षण प्राप्त जातीय टीचर से पढ़ना हुआ। इसमे उस पड़ विशेष पर कार्य करने वाले की सेवाओ का लाभउठाने वाले समूह का भी ध्यान रखना चाहिए। आपदा पर्बंधन मे यदि विलांगो को आरक्षण देकर नियुक्ति दी जाए तो क्या ये उचित होगा । इसका पुरे समज आर पड़ने वाले समग्र प्रभाव का भी आकलन करना चाहिए.इस समस्या का समाधान या हो सकता हे की आरक्षण देते समय न्यनतम मानक भी निशिचत करने चाहिए उनसे अधिक विचलन कोस्वीकार नही करना चाहिए .अन्यथा समग्र रूप मे ये सामाजिक अन्याय का एक उपकरण सिद्ध होगा।
6/12/2009
गुर्जर--मीना
राजस्थान मे आरक्षण को लेकर बवाल मचा हुआ हे ।गुर्जरों का कहना हे की हमारी हालता मीणाओं की तुलना मे ख़राब हे । गुराजरो को दिया जाए या नही इस पर बहस चल रही हे । लेकिन जीके आदिवासी होने पर संदेह नही हे उनकी क्या हालत हे ---भील ,सांसी ,डामोर ,सहरिया । इन सची आदिवासियों का हिस्सा कोण खा गया हे । भूख से नारने की खबरे इन आदिवासियों मे से आती हे न की गुर्जर और मीणाओं से
आरक्षण
आरक्षण वो भी सरकारी नोकारियो मे ,के मुद्दे पर एक बात स्पष्ट हे की कोई भी व्यक्ति ,विद्वान निष्पक्ष नही रह paataa हे । अगर वो savarna हे to virodha ही karegaa or dalita या ओ बी cee से हे to samrthan ही karegaa.पर एक बात samjh मे नही आती ये digvijaya singh , arjun singh .or vee पी singh मे esaa क्या हे की ये इसका samrthan ही करते हे । शायद पुराने raajvansho से होने के कारण raajniti खून मे ही पायी जाती हे or raajniti का pahalaa sidaanta भी की futa daalo or raaj करो ।
6/09/2009
स्त्री-पुरूष
किसी ने बहुत गहरी बात कही हें .अगर मुक्त होंगे तो दोनों साथ होंगे वरना एक दुसरे की पराधीनता को मजबूत करेंगे।
5/21/2009
हिंसा की पवित्रता
हर कोई अपना पक्ष सही बताकर हिंसा को उ चित ठहरता हे पर इसके शिकार ज्यादातर निर्दोष ही होते हे । लंबे समय तक शत्रुता चलाने के बाद यह याद नही रहता की पहली गलती किसने की । की बार पीढियों से लड़ रहे लोगो जेसे कबीलों मे ,को यह याद नही रहता की वो लड़ क्यो रहे हे । पहली गलती छोड़कर लादी का कारन भी याद नही होता । बस लड़ रहे हे .पिछले ५-७००० सालो आदमी लड़ ही तो रहा हे । एक दुसरे के ख़िलाफ़ कभी यक्तिगत तो कभी कबीले परिवार या रास्त्र के रूप मे । लड़ने से समस्या हल हो जाती तो कबकी हो गा ई होती .युवाओ मे हिंसा के पार्टी कुछ ज्यादा ही आकर्षण पाया जाता हे । तात्कालिक रूप से कभी कभी ये फायदा भी पहुचा सकती हे पर इसे एक निति के रूप मे अपनाने के गंभीर परिणाम हो सकते हे । स्याम के पार्टी हिंसा की संभावनाओं से हमें शा आशंकित रहना । डर कर जीन तो कोई अची जिंदगी नही हे
.ves e bhi jo svayam ko
.ves e bhi jo svayam ko
बेटी--बहु
भारतीय मध्य वर्ग की बड़ी अजीब विडम्बना हे । जब बहु धुधाने जात एहे तो चाहते हे की इसी बहु मिले जो भुधापे मे चन से दो रोटी रख दे और दुत्कारे न । यानि संयुक्त परिवार के लिए ठीक हो और उन शर्तो को मानाने के लिए राजी हो । पर जब बेटी के लिए रिश्ता देखने जाते हे तो कोशिश यही करतेव हे की लड़का एसा मिले जिस पर माँ बाप और छोटे भाई बहनों का भर न हो । ये दोनों बातें एक साथ सही केसे हो सकती हो । .बहु धुन्द्ते समय सम्मने वाले पक्ष को ग़लत नही ठराया जा सकटा और बेटी ब्याहते समय अपने आपको । हे पर हकीकत हमारे समज की । सब वाही पर दूसरो मे खामी या गलतिया निकलते हे
फिराक
नंदिता दास बड़ी गहरी अभिनेत्री हे । अत उनकी बनायी फ़िल्म से भी बड़ी उमीदे थी । पर इतनी एकपक्षीय फ़िल्म आज तक नही देखि । फ़िल्म मे सब सही हे । पर ये सब कोई हुआ और इनकी शुरुआत के लिए भी कोई चिंगारी कहा से आई । हद हे की पुरी फ़िल्म मे गोधरा तरणमेजलाये जाने की घटना तक का उल्लेख भी नही किया गया हे । इसे देखकर तो लगता हे की इतना गंभीर अन्याय एकपक्षीय होता और मे एक मुस्लिम होता और मे सिर्फ़ फ़िल्म को अन्तिम सत्य मानता तो आतंकवादी बन सकता था । ये तो वाही बात हे की आप एक पक्ष को बिल्कुल निर्दोष दिखाकर दूसरो के पार्टी हिंसा के लिए प्ररित कर रहे हे .
खुदा के लिए और ब्लेक एंड व्हाईट देखिये .पता नही नंदिता को क्या हो गया हे । सिर्फ़ पशिमी आलोचकों की पर्शंशा पाने के लिए वाकई उनकी आँखों पर बड़ा मोटा चश्मा चढ़ गया हो या फ़िर मेरी आँखों पर की सच दिखाई नही देता ।
खुदा के लिए और ब्लेक एंड व्हाईट देखिये .पता नही नंदिता को क्या हो गया हे । सिर्फ़ पशिमी आलोचकों की पर्शंशा पाने के लिए वाकई उनकी आँखों पर बड़ा मोटा चश्मा चढ़ गया हो या फ़िर मेरी आँखों पर की सच दिखाई नही देता ।
चुनाव
योगेन्द्र यादव ने अपने लेखो मे भारतीय चुनावो से जुड़े कई मिथक तो०दे हे । मुस्लिम मतदाताओ का मत पर्तिशत भी अन्य के सामान ६० पर्तिशत के आस पास ही रहता हे । युवा पशिमी युवाओ से अलग हे वहा संयुक्त परिवार नही होते । यहाँ युवा समाज की मुख्य धारा और परिवार से जुड़े होते हे । अत उनके वोट भी लगभग सामान्य परवर्ती दर्शाते हे .जाती आधार पर मतदान निर्णायक नही होता । । ये फायदा जरूर करता हे .
वेबसाईट सूची आई ऐ एस के लिए
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5/09/2009
वर्जिन
समाज मे badi तेजी से हो बदलाव हो रहे हे ।युवा वर्ग की मानसिकता के बारे मे अगर एक लाइन मे कहा जाए तो कहा जा सकता हे की -If a man is virgin it means lack of opportunity ,if a female is virgin it means she didnot make the ओप्पोर्तुनिटी। इस बात से ये भी पता लगता हें की लड़किया या महिलाये अभी भी पुरुषों की तुलना मे ज्यादा नेटिक होती हें ।
मुफ्त का वेतन
सरकारी कर्मचरियो को हर महीने मुफ्त का वेतन देने के बजाये सरकार को उनके काम के अनुरूप टार्गेट और इन्सेन्टिव बेस्ड वेतन देना चाहिए । ऐस बी आई जेसे बेंको की कार्य प्रणाली मे इससे बदलाव देखा जा सकता हे .अन्य विभागों मे टारगेट तो दिए जा रहे हे पर वेतन को इससे नही जोड़ा जा रहा हे.फिक्स वेतन के बजाये इन्सन्तिवे को अनिवार्य बनाये बिना आम आदमी को होने वाली परेशानी और चक्करों से मुक्ति नही मिलेगी । .इससे भ्रस्टाचार भी कम होगा .
1/27/2009
एलन --कोटा
कल पेपर मे ख़बर पढ़ी । कोटा राजस्थान के पी एम् टी ,आई आई टी , पी ई टी की तयारी करवाने वाले एलेन कोचिंग संस्था ने घोषणा की हे की वो आतंकवाद की लड़ाए मे शीद हुए परिवारों के बच्चो को मुफ्त पढायेंगे ।
1/16/2009
इसरायल -फिलिस्तीन विवाद
माइकेल वाल्ज्र का कहना हे की फिलिस्तीन मे चार युद्ध चल रहे हे .१इज़रयल को नष्ट करने के लिए फिलिस्तीनियों का युद्ध २ नया फिलिस्तीनी राज्य बनाने के लिए फिलिस्तीनियों का युद्ध ३.वर्ह्त्तर इजरायल बनाने के लिए इसरायल का युध ४.इस्रायल के आस्तित्व को बनाए रखने एस्थाई करने और फिलिस्तीनी समस्या का समाधान करने के लिए युध । । इनमे से दूसरा और चोथा नेतिक या न्याय युक्त हे बाकि अनेतिक या अन्याय युक्त .
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