हर कोई अपना पक्ष सही बताकर हिंसा को उ चित ठहरता हे पर इसके शिकार ज्यादातर निर्दोष ही होते हे । लंबे समय तक शत्रुता चलाने के बाद यह याद नही रहता की पहली गलती किसने की । की बार पीढियों से लड़ रहे लोगो जेसे कबीलों मे ,को यह याद नही रहता की वो लड़ क्यो रहे हे । पहली गलती छोड़कर लादी का कारन भी याद नही होता । बस लड़ रहे हे .पिछले ५-७००० सालो आदमी लड़ ही तो रहा हे । एक दुसरे के ख़िलाफ़ कभी यक्तिगत तो कभी कबीले परिवार या रास्त्र के रूप मे । लड़ने से समस्या हल हो जाती तो कबकी हो गा ई होती .युवाओ मे हिंसा के पार्टी कुछ ज्यादा ही आकर्षण पाया जाता हे । तात्कालिक रूप से कभी कभी ये फायदा भी पहुचा सकती हे पर इसे एक निति के रूप मे अपनाने के गंभीर परिणाम हो सकते हे । स्याम के पार्टी हिंसा की संभावनाओं से हमें शा आशंकित रहना । डर कर जीन तो कोई अची जिंदगी नही हे
.ves e bhi jo svayam ko
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