8/17/2008

पूँजीवाद

सर्जनात्मक पूँजीवाद दुनिया से गरीबी और अभावो को कम करने में मदद कर सकता हे । इंसान सिर्फ़ अच्छा होता तो समाजवाद और आदर्शवाद से ही काम चल जाता .बहुत बुरा होता तो पूंजीवाद भी काम नही कर पा ता .आर्थिक लाभ के बिना पेरना नही मिलती .सरकारी नोकरिया इसीलिए आरामतलबी और ब्र्स्ताचारो के अधिकार की पर्याय बन गयी हे .चीन ने भी बाजार समाजवाद का रास्ता अ पना कर हजारो को गरीबी की रेखा से निकला हे .

8/08/2008

हिंदू फासीवाद

भारत मे घट रही घटनाये और सरकार की तुस्टीकरण की नीतिया भविष्य मे नई समस्याए पैदा करेंगी .सभी मुसलमानों को इसके लिए उत्तरदायी ठहराया जाना और आम हिंदू मे इसका स्वीकार खतरनाक हे । कोई भी धूर्त नेता गुमराह मुसलमान नवयुवको की तरह हिंदू युवको को भी गुमराह जे कर सकता हे । इससे हिंसा प्रतिहिंसा का लंबा दोर चलेगा जिससे भला किसी का नही होगा । .सिर्फ़ दोनों और से निर्दोष लोग शिकार होंगे बढ़ता हुआ भारत रुक भी सकता हे । । सरकार को दोनों और के असंतोष के निवारण के उपाय करने होंगे । सिर्फ़ sohard की बातें करने से काम नही चलेगा । आतंकवादियों के प्रति कडी कारवाई भी जरुरी हे ।

बम

बम फोड़ने वाले निर्दोष हे और मरने वाले दोषी । । गुमराह नवयुवक हे । सिमी रस्त्रवादी संगठन हे क्योकि लालू और मुलायम जेसे लोगो को सुरक्षा मिलती हे । उनके घर का कोई सदस्य तो नही मरा । मरे तो आम आदमी ही हे । अगर ख़ुद के बीवी बच्चे मर जाए तब भी ये लोग सिमी का समर्थन ही करेंगे । नेता होने का मतलब यही हे जिसकी अंतरात्मा मर गयी हो । कितनी बेशर्मी के साथ खुलेआम वोट बेंक के लिए समर्थन किया । आम मुसलमान की आवाज कही नही हे. उसे । १० और २० पर्तिशत कट्टरपनथियौ ने दबा दिया हे । हिंसा सिर्फ़ प्रतिहिंसा को पैदा करती हे । हिंदू आतंकवाद कोई नयी बात नही रह गयी हे ।

जाने तू

एक अच्छी फ़िल्म हे .मसला मूवी हे पर बोगौस फिल्मो से तो अच्छी हे । अभी अगली और पगली फ़िल्म देखकर पक गया .पता नही क्या सोचकर बना देते हे । कॉमेडी फ़िल्म और एक बार भी हसी नही चली जुगुप्सा के भावः पैदा होते हे । जाने तो मे नायक के पास मोबाएल नही होना खटकता हे .दोस्तों मे एक दुसरे को चाहना फ़िर जो मिले उसे ही स्वीकार कर लेना एक हकीकत हे । कुल मिलाकर पर्योगो के नाम पर कचरा ही जयादा बन रहा हे । दे तली और अगली पगली देखकर दिमाग घूम जाता हे । इन लोगो का हसी का सेंस कमजोर हे । जो लोग असली जिंदगी मे ख़ुद किसी को न हँसा पते हो या ज्याददा हसने की आदत न हो। वो हसी के फूहड़ता और व्बेव्कूग्फी का पर्याय समझा लेते हे