एक अच्छी मूवी हे .एक नवोदित तरीका के संघर्ष के दिनों से लेकर सफलता को न पचा पाने और अपने इगो और दिल की कशमकश में अपनी जिंदगी को हर जाने की कहानी हे. जिन सस्ते तरीको का सहारा लेकर फिल्म उद्योग में तरीका ने सफलता पाई थी, वह खुद भी उन्ही तरीको की शिकार बन गई. सफलता पाने के लिए एक शादीशुदा आदमी से प्यार करना फिर उसके प्यार में ही दिल टूट जाना, अपने आप में गहरा विरोधाभास हे.पर निर्देशक ने जिंदगी की हकीकत को परदे पर रखा हे --की हम भले ही कितनी भी झूठ और बेमानी का सहारा ले, कितने ही गलत तोर तरीके अपनाये, पर अपने प्रति हम भी ईमानदारी और भलाई का ही ट्रीटमेंट चाहते हे. हलाकि नायिका का अंत में उसे चाहने वाला निर्देशक मोजूद होने पर भी आत्महत्या कर लेना गले से नीचे नहीं उतरता .पर असल जिनगी में भी जब लोग अपने भीतर से टूटते हे तो वो निराशा और हताशा में सामने दिख रहे उज्जवल भविष्य को भी अँधेरे का ही एक रूप मानकर अपने आप से किसी भी सकारातमक बदलाव के लिए इंकार कर देते हे.नायिका को अपनी माँ द्वारा अस्वीकार किया जाना, उसके बारे में उलटी सीढ़ी बाते पात्र पत्रिकाओ में छापना, उसके खुद के मन में अपनी नकरातमक छवि का निर्माण करता हे, जिसे हटाने के लिए वो अक्सर उसे छुपाने के बजाये पूरी बोल्डनेस के साथ अपने बिंदास संवादों में उन्हें स्वीकार भी करती हे --"एसी लड़कीया घर ले जाने के लायक नहीं पर बिस्तर में ले जाने के लायक होती हे." और अंत में अपनी इस छवि के लिए कही न कही खुद को ही दोषी मानकर खुद को सजा देने का निर्णय नायिका अपने मन में कर चुकी होती हे .संवाद अदायगी बेजोड़ हे . एक स्थान पर जब निर्देशक उससे कहटा हे की --"तुम पैदा ही क्यों हुई तो नायिका का जवाब की लोग हमें देखना चाहते हे इसलिए में नहीं कोई और सही पर हमारे जेसी लडकिया पैदा होती रहेगी .मूवी में नायला का किरदार बहुत खूबी से रचा गया हे जो नायिका द्वरा कही उनकाही बातो की पूर्ति करता हे .कुल मिलकर किसी भी सस्ती मूवी की अपेक्षा निर्माता निर्देशकों ने अश्लीलता से बचते हुए एक अच्छी कहानी को अच्छी ढंग से पिरोया हे. पूरी मूवी किसी साहित्यिक करती की तरह लगती हे . हालाकि नसीरूदीन शाह का अभिनय हमेशा से एक मील का पत्थर रहा हे पर इसमें उनके लायक कोई काम ही नहीं था उनका किरदारबोझिल हे और बोरियत पैदा करता हे वेसे भी ६० के नसीरूदीन की जोड़ी हीरो के रूप में बिलकुल नहीं जम रही वो कुछ ज्यादा बुड्डे लग रहे हे .ये पूरी तरह से नायिका प्रधान फिल्म हे जिसमे सरे किरदार सिर्फ नायिका की कहानी कहते हे जो कुछ वो अपने मुह से नहीं कह पाती .फिल्म के बहाने ग्लेमर, सफलता, हताशा जेसे विषयो पर भी प्रकाश पड़ता हे .प्रीटी जिंटा ने भी एक बार कहा था की कैमरे की चमक की आदत पड़ जाने के बाद उससे दूर हो जाना हर कोई नहीं झेल पाता.चमक के पीछे हमेशा एक घुप्प अँधेरा होता हे, जिसका सामना करने के लिए हमें तयार रहना चाहिए . क्योकि चमक तो अस्थायी हे इसीलिए वो सूरज की रौशनी में अपना कमल नहीं दिखा पाती , उसके लिये प्र्स्तभूमि में गहरा अँधेरा होना जरुरी हे .पर अपने ज़माने में उचाई और शोहरत की बुलंदियों पर पहुचे लोग इसे पचा नहीं पाते और बाकि जीवन अवसाद की कहानी बनकर रह जाता हे .